…. राम मंदिर निर्माण की प्रक्रिया तेजी से चल रही है सीएम योगी ने रामलला के गर्भ गृह का शिला पूजन कर भव्य राम मंदिर निर्माण की दिशा में एक और कदम बढ़ा दिया है लेकिन लोगों की रुचि फिलहाल राम मंदिर में नहीं, श्रृंगार गौरी मंदिर में है जहां से जल्द ही पुरातन भारतीय संस्कृति की एक नए अध्याय की शुरुआत होने वाली है दरअसल जिस श्रृंगार गौरी मंदिर को तोड़कर मुगल आक्रांताओं ने ज्ञानवापी मस्जिद में तब्दील कर दिया था वहां अब कोर्ट के आदेश के बाद सर्वे के दौरान जो साक्ष्य मिले हैं उन्होंने साबित कर दिया है कि मौजूदा ज्ञानवापी मस्जिद श्रृंगार गौरी मंदिर के सीने को उधेर कर ही बनाया गया था। कोर्ट में हिंदू पक्ष के द्वारा कई सबूत पेश किए गए हैं जो यह साबित करने के लिए काफी है कि जिसे ज्ञानवापी मस्जिद कहा जा रहा है दरअसल वह श्रृंगार गौरी मंदिर ही है अदालत को सौंप पर सबूतों में शंख त्रिशूल कमल डमरु खंडित मूर्तियां देवताओं की तरह कृपया कमल की कलाकृतियां शेषनाग की कलाकृतियां नागफनी की आकृति दीवार में ताखा और दिए समेत कई अन्य हिंदू धार्मिक चिन्ह मिलने के बाद कही गई है इसे देखकर हिंदू पक्ष काफी उत्साहित है सबूतों को देखने के बाद फिलहाल अदालत का रुख भी हिंदू पक्ष के साथ दिख रहा है मंदिरों से मिले सबूतों और अदालत के रुख से भाजपा और संघ परिवार भी संतुष्ट हैं। मुख्य चुनौती तो विपक्षी दलों को है जो वे मौजूदा समय में बदले हिंदुत्व की राजनीति में ज्ञानवापी मस्जिद का खुलकर बचाव नहीं कर पा रहे हैं इतने सारे सबूतों के सामने आने के बाद विपक्षी दलों के पास बचाव के लिए कोई तर्क नहीं बचा है वे केवल गंगा जमुनी तहजीब की बात कर रहे हैं और भाजपा को कोस रहे हैं।
वही दूसरी तरफ संघ प्रमुख मोहन भागवत ने स्पष्ट कर दिया है कि राम मंदिर के बाद अब किसी भी धार्मिक स्थल को लेकर कोई ऐसा आंदोलन नहीं खड़ा किया जाएगा, संघ का जो मकसद था वह पूरा हो चुका है लेकिन लोगों के मन में मंदिर- मस्जिद को लेकर जो सवाल हैं संघ उसके खिलाफ नहीं है। बेहतर होगा कि लोग आपस में बैठकर समस्या का समाधान करें, तो वही जिस राम मंदिर आंदोलन को पालमपुर अधिवेशन 1989 में भाजपा ने विश्व हिंदू परिषद के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन को अपने हाथों में लेने का फैसला किया है, वे अब किसी नए मंदिर-मस्जिद विवाद में पड़ना नहीं चाहते।
अब सवाल यह उठता है कि भाजपा हो या फिर संघ इस विषय पर खुलकर बोलने से बच क्यों रहे हैं? दरअसल वर्षों पुरानी राम मंदिर और बाबरी मस्जिद का मसला काफी पेचीदा था कहीं सबूत थे तो कहीं आस्था का सवाल था लेकिन संघ और भाजपा का मानना है कि श्रृंगार गौरी मंदिर के साथ ऐसा नहीं है यहां इतने सबूत हैं कि इसे कोर्ट में साबित करना हिंदू पक्षकारों के लिए बहुत मुश्किल भरा काम नहीं होगा तो, वहीं दूसरी तरफ सांप्रदायिकता और हिंदू मुस्लिम विद्वेष फैलाने के आरोपों का दंश झेल रहे हैं, भाजपा का मानना है कि इस समय पूरी दुनिया की नजर पीएम मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार पर हैं ऐसे में सरकार को किसी भी मंदिर के निर्माण और विवाद से बचना चाहिए, जहां तक श्रृंगार गौरी मंदिर का मसला है तो यह पहले राष्ट्रीय विमर्श और चिंतन का केंद्र बिंदु बने एक बार यह राष्ट्रीय चिंतन और विमर्श का केंद्र बन जाएगा तो राम मंदिर की तरह श्रृंगार गौरी मंदिर भी जन आंदोलन का स्वरूप धारण कर लेगा। इस जन आंदोलन की शुरुआत स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के नेतृत्व में साधु संतों ने वजू खाने में मिले शिवलिंग की पूजा करने के ऐलान के साथ ही कर दिया है। इस सबके बीच संघ और भाजपा परोक्ष रूप से इस जन आंदोलन को अपना समर्थन देती रहेगी।
जाहिर है कि इस ऐलान के बाद जन आकांक्षाओं और आस्था के नाम पर भाजपा और संघ का इस विमर्श में सीधे तौर पर शामिल होने के लिए खुद जनता की तरफ से मांग उठेगी और सनातन धर्म संस्कृति के रक्षार्थ अपने प्रकृति से परिभाषित संघ और भाजपा का समर्थन और योगदान अवश्यंभावी हो जाएगा। इस बदले परिस्थिति में 1991 के प्लेस ऑफ़ वरशिप एक्ट को समाप्त करने के लिए जनता की तरफ से मांग उठेगी। गौरतलब है कि किसी भी लोकतांत्रिक देश में जनता की मांग और परिस्थिति के हिसाब से ही कानून बनाए जाते हैं या फिर कानून खारिज किए जाते हैं जैसा 1991 में किया गया था। ठीक उसी आधार पर जनता की मांग और हालात के हिसाब से सरकार इस कानून को समाप्त करने का भी अधिकार है। जैसे सरकार ने आर्टिकल 370 को खत्म करके किया।
वैसे यह बताने की जरूरत नहीं है कि भाजपा और संघ के लिए मथुरा काशी और राम मंदिर हमेशा से उनके मेनिफेस्टो में सबसे ऊपर रहा है मेनिफेस्टो में शामिल राम मंदिर निर्माण की मांग का संदेश ही भाजपा को शहरों से सुदूर गांव तक ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राम मंदिर निर्माण के साथ ही लोगों की भाजपा से उम्मीदें भी बढ़ गई है इसलिए भाजपा चाह कर भी अब इससे दूरी नहीं बना सकती। एक लंबे संघर्ष के बाद भाजपा और संघ ने देश के हिंदुओं को एकजुट करने में कामयाबी हासिल की आज पूरा हिंदू समाज संघ और भाजपा की ओर देख रहा है गौरतलब है कि मौजूदा राजनीतिक हालात 90 के दशक से बिल्कुल अलग है जब हिंदू हित की बात करते ही सांप्रदायिकता के नाम पर संघ और भाजपा को घेर लिया जाता था लेकिन अब हालात बदल गए हैं बदले सियासी हालात में किसी भी राजनीतिक दल के लिए श्रृंगार गौरी मंदिर का विरोध करना असंभव है। इसलिए संघ और भाजपा चाहती है कि राम मंदिर आंदोलन की तरह श्रृंगार गौरी मंदिर पर व्यापक जनसमर्थन तो मिले ही साथ ही इस मुद्दे पर विपक्षी दल या तो साथ दे या फिर जनता के सामने एक्सपोज हो और उनकी छद्म धर्मनिरपेक्षता की पोल खुले।
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अभी मैं कर रहा हूं ओम नमः शिवाय
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